वाल्मीकि रामायण के अनुसार लंका पर चढ़ाई करते समय भगवान् श्रीराम के कहने पर वानरों और भालुओ ने रामसेतु का निर्माण किया था, भगवान श्रीराम विभीषण से मिलने दोबारा लंका गए, तब उन्होंने रामसेतु का हिस्सा स्वयं ही तोड़ दिया था, ये बात बहुत ही काम लोग जानते है।
इससे जुडी कथा का वर्णन पद्म पुराण में मिलता हैं.
जिसके अनुसार अयोध्या का राजा बनने के बाद एक दिन भगवान श्रीराम को विभीषण से मिलाने का विचार आया अयोध्या की रक्षा का भार लक्ष्मण को सौंपकर श्रीराम व भरत पुष्पक विमान पर सवार होकर लंका की ओर चल पड़े।
पुष्पक विमान से जाते समय लंका के रास्ते में ही किष्किंधा नगरी आती है श्रीराम और भरत वहा ठहरते है जब सुग्रीव को पता चलता है की भगवान श्रीराम लंका जा रहे है तो वो भी साथ चल देते है।
जब विभीषण को पता चलता है की भगवान श्रीराम और भरत सुग्रीव उनसे मिलाने आ रहे है तो वो बहुत प्रसन्न होते है और पुरे नगर को सजाया जाता हैं।
भगवान श्रीराम तीन दिन तक लंका में रुकते है और विभीषण को धर्म - अधर्म का ज्ञान देते है और कहते है की तुम हमेशा धर्म पूर्वक लंका पर राज करना। जब भगवान श्रीराम जाने लगे तो विभीषण कहते है हे प्रभु आप के द्वारा बताये हुए धर्म के मार्ग पर ही मैं चलूँगा पर इस सेतु से कोई आकर मेरी प्रजा और मुझे सताएगा तो उस स्थिति में मैं क्या करूंगा।
विभीषण की बात सुनकर भगवान श्रीराम अपने बाणो से उस सेतु के दो टुकड़े कर देते है और फिर उसे और तीन भागो में अपने बाणो से विभाजित कर देते है। तो इस तरह रामसेतु जिसे स्वयं भगवान श्रीराम ने बनाया था उसे खुद भगवान श्रीराम ने ही तोड़ दिया था।